गन्ने के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम

गन्ने के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम के बेरे मे अपको विस्तार से जानकारी मिलने वाली है  वर्तमान में हमारे देश में गन्ने को एक औद्योगिक नकदी फसल के रूप में मान्यता प्राप्त है। गन्ना हमारे देश में गुड़ और चीनी उत्पादन का आधार है। अपको ये भी ब बता दे कि हमारा देश गन्ने के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है,

फिर भी इसकी प्रति हेक्टेयर उपज विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में बहुत कम है। इस कम उपज के अनेक कारणों में गन्ने को हानि पहुँचाने वाले कुछ रोगों का प्रमुख स्थान है। गन्ने के रोग न केवल कुल उपज को कम करते हैं बल्कि गुड़ और चीनी सामग्री को भी प्रभावित करते हैं। अधिकांश किसान गन्ने को प्रभावित करने वाली बीमारियों को पहचानने में विफल रहते हैं।

गन्ने के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम
गन्ने के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम

जिससे फसल की पैदावार में भारी कमी आ रही है। इसलिए प्रस्तुत लेख में गन्ने की फसल को प्रभावित करने वाले रोगों की पहचान एवं उनकी रोकथाम के उपाय बताए गए हैं। गन्ने के प्रमुख रोग कवक, विषाणु, परजीवी, माइकोप्लाज्मा तथा पोषक तत्वों की कमी आदि से होते हैं।

गन्ने का लाल सड़न रोग

यह रोग कोलेटोट्राइकम फेलकेटम नामक कवक से होता है। इस रोग के लक्षण जुलाई-अगस्त माह से प्रकट होने लगते हैं तथा फसल के अन्त तक दिखाई देते हैं गन्ने की ऊपर की तीसरी-चौथी पत्ती किनारे से सूखने लगती है। निचली पत्तियों को हटाने पर ऊपर के सभी गांठों से जड़ें दिखाई देती हैं पत्तियों की मध्य शिरा पर लाल भूरे रंग के धब्बे जैसे रुद्राक्ष या मोती पत्ती के दोनों ओर दिखाई देने लगते हैं बाहरी लक्षण संक्रमण के 15 से 20 दिनों के बाद ही दिखाई देते हैं और गन्ने को पूरी तरह से सूखने में 10 दिन और लगते हैं जब प्रभावित गन्ने को काटा जाता है, तो भीतरी क्षेत्र लाल रंग का दिखाई देगा और सिरके जैसी महक आएगी।

स्मट या कंडवा रोग

यह रोग स्पोरिसोरियम सेटेमिनम नामक कवक से होता है गन्ने के बढ़ते बिंदु से चाबुक जैसी संरचना विकसित होती है चाबुक के ऊपर काले चूर्ण जैसे बीजाणु होते हैं जो पतली झिल्ली से ढके होते हैं इसके फटने से काला चूर्ण, जिसमें फफूंद बीजाणु होते हैं, पौधे और जमीन पर फैल जाता है यहीं पर बीजाणु आगे फैलते हैं और गन्ने और गन्ने की फसलों में द्वितीयक संक्रमण पैदा करते हैं। इससे गन्ने की संख्या और रस की मात्रा कम हो जाती है रोगग्रस्त पौधों की कलियाँ फूट जाती हैं, जो बौनी रह जाती हैं गन्ने के झुरमुट या ठूंठ से निकलने वाला गन्ना संक्रमित हो जाता है। ऐसे गन्ने को बीज के रूप में प्रयोग करने पर अगली फसल में इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है।

सफेद गिडार

गन्ने के पौधों में सफेद गिडार रोग का प्रभाव वर्षा ऋतु में अधिक दिखाई देता है। इस रोग का कीट पौधे की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाता है। जबकि इसकी सुंडी पौधे को खाकर उसकी जड़ों को नुकसान पहुंचाती है। जिससे पौधों का बढ़ना रुक जाता है। और कुछ दिनों बाद ये सूख कर नष्ट हो जाते हैं।

रोकथाम कैसे करें

  • इसकी रोकथाम के लिए खेती की तैयारी के समय खेत की गहरी जुताई करें और तेज धूप प्राप्त करने के लिए कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें।
  • गन्ने के कंदों की रोपाई से पूर्व इनका उपचार बैविस्टिन या कैप्टान औषधि से करना चाहिए।
  • खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर 2.5 किग्रा मेटाराइजियम ऐनिसोप्ली को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर सिंचाई के साथ पौधों को देना चाहिए।

कंडुआ रोग 

गन्ने के पौधों पर इस रोग का प्रभाव कभी भी दिखाई दे सकता है। इस रोग के लगने पर पौधे लम्बे व पतले दिखाई देते हैं। तथा पौधों का उपरी भाग काला पड़ जाता है। इस रोग के लगने से पौधों की पहली आँख समय से पहले ही अंकुरित होने लगती है।

रोकथाम कैसे करें

  • इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर उचित मात्रा में कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन का छिड़काव करना चाहिए।
  • गांठों का चयन करते समय रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

दीमक

बोये हुए गन्ने के दोनों सिरों से प्रवेश कर भीतर के कोमल भाग को खाकर मिट्टी से भर देता है। प्रभावित पौधों की बाहरी पत्तियाँ पहले सूख जाती हैं और बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। ऐसे पौधों से दुर्गंध नहीं आती और खींचने पर पौधा मिट्टी से आसानी से उखड़ जाता है।

रोकथाम कैसे करें 

  • बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर लेनी चाहिए।
  • खेत में गाय के कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • फसल अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
  • नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक का प्रकोप कम होता है।
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